खाकी-अपराधियों की गठजोड़ खतरनाक ही नहीं, चिंताजनक

खतरनाक ही नहीं, चिंताजनक की सबसे सुरक्षित जेलों में गिनी जाने वाले केंद्रीय कारागार CO. के गत अक्टूबर माह में वायरल हुए वीडियो जेलों के अंदर पनप रहे भ्रष्टाचार और अपराधी- खाकी के गठजोड़ की कहानी ही नहीं कह रहे, बल्कि जेलों को सुधार गृह बनाने की अवधारणा तक को झूठा साबित कर रहे हैं। प्रदेश में जोधपुर ही नहीं, बल्कि अन्य जेलों में भी हो रही इस तरह की घटनाएं चिंता का विषय है। गत मंगलवार की रात फलोदी के ढंढू उग्राव गांव में स्थित सोलर एनर्जी के प्लांट पर हुए सुनियोजित हमले में अजमेर के हाई सिक्यूरिटी जेल में बैठे कुख्यात अपराधी हार्डकोर क्रिमिनल और गैंगस्टर मांगीलाल विश्नोई का नाम उजागर हो रहा है। बताया जा रहा है कि इस गैंगस्टर ने अपने दोस्त पुलिसकर्मी से दोस्ती निभाने के लिए इस सुनियोजित हमले को अंजाम दिया। इससे ये साबित होता है कि जेल में बैठे अपराधी भी पुलिस की मदद से वारदातों को अंजाम दे रहे है। इसी तरह जेल में मोबाइल और मादक मादक पदार्थ मिलना नई बात नहीं है। जब भी दिखावे के लिए ही सही, जेलों में छापेमारी की गई है तो कुछ न कुछ मिला ही है। शायद ही ऐसा कोई दृष्टांत दिखाई या सुनाई दिया हो कि औचक निरीक्षण में जेल की व्यवस्थाएं सही और सुचारू पाई गई। फिर भी जेलों की हालत को गम्भीरता से लेने की शायद ही किसी सरकार ने सोची होगी। जोधपुर जेल से कोई वीडियो पहली बार वायरल नहीं हुआ है। राजसमंद में मर्डर का लाइव वीडियो बनानेवाले शंभु का वीडियो भी पिछले साल फरवरी में बाहर आया था। जिसमें वह जेहादी ताकतों से जेल में भी खुद को खतरा बताता नजर आया। इसी जेल में एक कुख्यात अपराधी के बर्थ डे सेलिब्रेशन के फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड हो गए। जोधपुर जेल का ताजा वीडियो वायरल करने वाला व्यक्ति भी न सिर्फ हत्या के मामले में आजीवन कारावास भुगत रहा है, बल्कि उसका ट्रैक रिकॉर्ड भी बहुत कुछ कह जाता है। जेल मैन्युअल के उल्लंघन के आरोप में उसे नौ बार दंडित करने का दावा तो जेल प्रशासन करता है और इसकी पुष्टि के लिए उसके कभी श्रीगंगानगर तो कभी अजमेर और कभी उदयपुर स्थानान्तरित करने के सबूत गिनाए जाते हैं, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी भी जेल अधिकारी के पास नहीं है कि ऐसे अपराधी पर नजर क्यों नहीं रखी गई। उसके पास मोबाइल कैसे पहुंचा, उसने कैसे वीडियो बना लिए, कैसे वीडियो वायरल भी कर दिए। क्या जेल प्रशासन कैदी के इस कृत्य को न रोक पाने की अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है। जोधपुर की जेल दिल्ली की तिहाड़ जेल के बाद उत्तर भारत की सर्वाधिक सुरक्षित जेलों में गिनी जाती रही है। यहां पंजाब के दुर्दान्त आतंकियों को रखा गया, तो कश्मीर के आतंकी और अलगाववादी नेता भी यहां लाकर इसलिए कैद रखे गए, क्योंकि जेल की दीवारें मजबूत है। लेकिन आज ये जेल ही अपराधियों से सुरक्षित नहीं है। जिस तरह से कुछ नोटों के लालच में कैदियों तक न सिर्फ मोबाइल पहुंच रहे है। बल्कि, मादक पदार्थ भी पहुंच रहे है। इसमें जेल के कर्मचारी तक पकड़े जा चुके हैं। जोधपुर जेल के सात प्रहरियों को मोबाइल और मादक पदार्थ कैदियों के लिए लाते हुए रंगे हाथों पकड़ा जा चुका है। इनके खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज है। फिर भी जेल प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया। जेल प्रशासन जेल में लगे जैमर पुरानी तकनीक के होने के कारण काम नहीं करने का कारण गिनाता है, लेकिन जेल के बाहर ही स्थित पुराने बिजलीघर में क्यों मोबाइल जैमर के प्रभाव के कारण काम नहीं करते और जेल में कैसे काम कर लेते है। दरअसल, जेलों की मोनिटरिंग करने वाली एजेंसियों के हाथ बंधे हैं। ये एजेंसियां पुख्ता जानकारी होने के बावजूद सीधे कार्रवाई नहीं करने की पाबंदी से बंधी हुई हैं। ताज्जुब होता है कि पुलिस, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जैसी एजेंसियां जेलों में सीधे कार्रवाई नहीं कर सकती। इन्हें अपनी किसी कार्रवाई के लिए जिला कलक्टर की अनुमति लेनी जरूरी है। अनुमति कलक्टरों के व्यस्त होने के कारण कई बार पंद्रह-पंद्रह दिन तक नहीं मिलती। ऐसे में फिर जेल कर्मियों और अपराधियों के गठजोड़ पर अंकुश कैसे लग पाएगा। कुल मिलाकर जेलों की हालत सुधारने के लिए न सिर्फ पुराने कानूनों में संशोधन की जरूरत है, बल्कि एक ऐसी एजेंसी तैयार करने की जरूरत है, जो जेलों पर सीधे नजर रख सके। बिना किसी बाध्यता के कार्रवाई कर सके। वरना खाकी और अपराधी का गठजोड़ खत्म होना मुश्किल है। जरूरत इस बात की भी है कि प्रांतीय स्तर पर कोई टास्क फोर्स बने। जेलों में मोबाइल या मादक पदार्थ मिलने पर सीधे जेलर और जेल अधीक्षक को जिम्मेदार मानकर कार्रवाई की जाएवरना जेलें सुधार गृह की बजाय क्रिमिनल यूनिवर्सिटी बनती नजर आएंगी।